आज जब ऑनलाइन कोडिंग सीखते बच्चों को देखता हूं तब इन बच्चों की बड़ी याद आती है। मेरा यह मानना है कि स्वास्थ्य और शिक्षा की सुविधा दुनिया के किसी भी व्यक्ति को एक समान मिलनी चाहिए और बड़ी आसानी से यह काम हो सकता है अगर हम हमारी पुरानी अर्थव्यवस्था को बदल दे। फिलहाल हम पैसों के चक्रव्यूह में फंसे हुए हैं कि जिनके पास पैसे ज्यादा होंगे उनकी अहमियत ज्यादा होगी ऐसा हमारा मानना है। यह बच्चे कभी स्कूल नहीं गए हैं। इस गांव में जाने का एक ही रास्ता है और वह है नाव। नाव की पर्याप्त मात्रा में नहीं है तो आपको आने या जाने के लिए काफी इंतजार करना पड़ता है। इस गांव में मोबाइल भी बड़ी मुश्किल से चलते हैं क्योंकि किसी भी कंपनी का अच्छा नेटवर्क नहीं आता है। पहले सरकार 80% सब्सिडी देती थी और 20% गांव वाले इकट्ठा करते थे और उन्हें एक नाव मिलती थी। फिर गांव वालों ने अपने खुद के पैसों से ही नाव बनाना सीख लिया और वो भी जो 20% इकट्ठे किए जाते थे उससे भी कम लागत में। गांव के बच्चे भी अपने आप ऐसे खिलौने बनाते रहते हैं जो कि आप तस्वीर में देख सकते हैं। ये वह बच्चे हैं जो कभी स्कूल में नहीं गए। अब सवाल यह है कि इनमें इतनी ज्यादा सृजनात्मकता स्कूल नहीं जाने की वजह से तो नहीं है ? क्योंकि मैंने ज्यादातर देखा है स्कूल में बच्चों की सृजनात्मकता को खत्म कर दिया जाता है। ज्यादातर स्कूल का एक ही मकसद रहता है पाठ्यक्रम को खत्म करना इससे ज्यादा सृजनात्मकता में स्कूलों की दिलचस्पी नहीं होती है। लेकिन फिलहाल बात इन बच्चों की है और मेरा मानना है कि अगर इनकी रचनात्मकता को, सृजनात्मकता को निखारा जाए तो यह दुनिया बदल सकते हैं। मैं से बच्चों की सृजनात्मकता को निखारने के लिए काम करना चाहते हैं। हम चाहते हैं ऐसे गांव में कुछ कंप्यूटर हो और उसमें ढेर सारे एजुकेशन रिसोर्सेज हो जो कि बिना इंटरनेट के भी देखें और पढ़े जा सके। थोड़ी बहुत किताब, विज्ञान के प्रयोग करने के लिए बेसिक किट एवं रोबोटिक एक्सपेरिमेंट के लिए कुछ संसाधन। मुझे यकीन है जल्द ही हम संसाधन जुटा के अपना काम शुरू करेंगे।
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