युवाओं को साहित्य पढऩा चाहिए, क्योंकि साहित्य ही विचारों को जन्म देता है और विचार क्रांति को। बिना साहित्य के अध्ययन के अच्छा ज्ञान हासिल नहीं किया जा सकता है। अच्छा पढऩे के साथ ही हमें अच्छा सुनने की आदत को भी जीवन में शामिल करना चाहिए। ये शब्द है मेरे चहीते कवि गोपालदास नीरजजीके । आपके जाने के बाद हिंदी कविता का मंच बस यही कहेगा....
"अब न वो दर्द, न वो दिल, न वो दीवाने रहे
अब न वो साज, न वो सोज, न वो गाने रहे
साकी! अब भी यहां तू किसके लिए बैठा है
अब न वो जाम, न वो मय, न वो पैमाने रहे।"
आज हम आपको कव्यांजली देना चाहते थे लेकिन कव्यंजली तो आप हमको देके चले गए और क्या खूब लिखा आपने सर, कास इस दौर के नेता इसे समझ पाते..
"दुखते हुये जख्मों पे हवा कौन करे
इस हाल में जीने की दुआ कौन करे
बीमार हैं जब खुद ही हकीमाने वतन
फिर तेरे मरीजों की दवा कौन करे ?"
हिंदू - मुसलमां में बटा ये देश क्या कभी आपके मजहब को समाज पाएगा ?
अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए।
जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए।
जिसकी ख़ुशबू से महक जाय पड़ोसी का भी घर
फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए।
आग बहती है यहाँ गंगा में झेलम में भी
कोई बतलाए कहाँ जाके नहाया जाए।
प्यार का ख़ून हुआ क्यों ये समझने के लिए
हर अँधेरे को उजाले में बुलाया जाए।
मेरे दुख-दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा
मैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी न खाया जाए।
जिस्म दो होके भी दिल एक हों अपने ऐसे
मेरा आँसू तेरी पलकों से उठाया जाए।
गीत उन्मन है, ग़ज़ल चुप है, रूबाई है दुखी
ऐसे माहौल में ‘नीरज’ को बुलाया जाए।
अलविदा नीरज जी,पर जब भी आपके गीत गुनगुनाएगे आप बहुत याद आयेंगे।
जितना कम सामान रहेगा
उतना सफ़र आसान रहेगा
जितनी भारी गठरी होगी
उतना तू हैरान रहेगा
उससे मिलना नामुमक़िन है
जब तक ख़ुद का ध्यान रहेगा
हाथ मिलें और दिल न मिलें
ऐसे में नुक़सान रहेगा
जब तक मन्दिर और मस्जिद हैं
मुश्क़िल में इन्सान रहेगा
‘नीरज’ तो कल यहाँ न होगा
उसका गीत-विधान रहेगा
"अब न वो दर्द, न वो दिल, न वो दीवाने रहे
अब न वो साज, न वो सोज, न वो गाने रहे
साकी! अब भी यहां तू किसके लिए बैठा है
अब न वो जाम, न वो मय, न वो पैमाने रहे।"
आज हम आपको कव्यांजली देना चाहते थे लेकिन कव्यंजली तो आप हमको देके चले गए और क्या खूब लिखा आपने सर, कास इस दौर के नेता इसे समझ पाते..
"दुखते हुये जख्मों पे हवा कौन करे
इस हाल में जीने की दुआ कौन करे
बीमार हैं जब खुद ही हकीमाने वतन
फिर तेरे मरीजों की दवा कौन करे ?"
हिंदू - मुसलमां में बटा ये देश क्या कभी आपके मजहब को समाज पाएगा ?
अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए।
जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए।
जिसकी ख़ुशबू से महक जाय पड़ोसी का भी घर
फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए।
आग बहती है यहाँ गंगा में झेलम में भी
कोई बतलाए कहाँ जाके नहाया जाए।
प्यार का ख़ून हुआ क्यों ये समझने के लिए
हर अँधेरे को उजाले में बुलाया जाए।
मेरे दुख-दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा
मैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी न खाया जाए।
जिस्म दो होके भी दिल एक हों अपने ऐसे
मेरा आँसू तेरी पलकों से उठाया जाए।
गीत उन्मन है, ग़ज़ल चुप है, रूबाई है दुखी
ऐसे माहौल में ‘नीरज’ को बुलाया जाए।
अलविदा नीरज जी,पर जब भी आपके गीत गुनगुनाएगे आप बहुत याद आयेंगे।
जितना कम सामान रहेगा
उतना सफ़र आसान रहेगा
जितनी भारी गठरी होगी
उतना तू हैरान रहेगा
उससे मिलना नामुमक़िन है
जब तक ख़ुद का ध्यान रहेगा
हाथ मिलें और दिल न मिलें
ऐसे में नुक़सान रहेगा
जब तक मन्दिर और मस्जिद हैं
मुश्क़िल में इन्सान रहेगा
‘नीरज’ तो कल यहाँ न होगा
उसका गीत-विधान रहेगा
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