सोशल मीडिया की दुनिया
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जब मैं स्कूल में था तब दिव्य भास्कर अखबार के लिए कविता लिखता था। स्कूल में पढ़ता था और कविता के सारे नियमों के बारे में मुझे पता नहीं था। (वैसे देखा जाए तो आज भी ज्यादा कुछ पता नहीं है) फिर कुछ पत्रकार उस कविता को नियमों के हिसाब से ठीक करने की कोशिश करते और आगे भेज देते। फिर वह डिपार्टमेंट संभालने वाले पत्रकार को अगर ने कविता सही लगती तो वह आगे भेज देता। फिर अखबार के सह संपादक को अगर यह सही लगे तब जाकर वह अखबार में प्रस्तुत की जाती। आज सोशल मीडिया में ऐसा कुछ नहीं है। आप जो चाहे, जिसे चाहे, जिस तरीके से चाहे अपनी बात रख सकते हैं। यहां हर कोई पत्रकार है, मूवी क्रिटिक्स है, कवि है, लेखक है, अभिनेता है।
मेरे कुछ दोस्त थे जो सोशल मीडिया पे आए और कुछ सोशल मीडिया में आकर दोस्त बन गए। कुछ ऐसे भी लोग थे जो सोशल मीडिया पर घंटों बहस करते लेकिन जब सामने मिलते तो दो शब्द भी ना कह पाते। स्कूल में था तब से मेरे विचार बाकी विद्यार्थियों से अलग रहे हैं, चाहे वो शिक्षा व्यवस्था हो, समाज व्यवस्था हो, राज्य व्यवस्था हो या अर्थव्यवस्था हो। धर्म की बात हो या व्यवसाय की, शादी की बात हो या समाज के बनाए हुए नियमों की बने बनाए पथ पर चलना मेरे लिए काफी मुश्किल रहा है।
गांधी जी ने कहा है कि विचारों की भिन्नता का मतलब एक दूसरे के विरोधी होना नहीं होता है अगर ऐसा होता तो मैं और मेरी पत्नी एक दूसरे के शत्रु हो जाते। लेकिन कई बार हो सकता है कि इसी विचारों की भिन्नता के चलते मैंने कठोर शब्द का इस्तेमाल किया हो। किसी को बुरा भला भी कहा हो। मेरी लिखी हुई पोस्ट से या उस में इस्तेमाल किए गए शब्द से आपको दुख पहुंचा हो। कई बार फेक न्यूज़ भी गलती से शेयर कर दिए हो। मैं अपने विचारों पर आज भी कायम हूं लेकिन मेरा यह आग्रह कभी नहीं रहा कि लोग भी उसी विचार के साथ सहमत हो। कठोर और अनचाहे शब्द का पहला वार आप लोगों की ओर से ही आता रहा लेकिन हो सकता है प्रतिक्रिया मेरी भी गलत हो। तो जिन जिन लोगों ने मुझे गालियां दी है, मुझे अनचाहे शब्द कहे है उन सबको मैंने माफ कर दिया है और जिन लोगों को मेरे अनचाहे शब्दों से दुख हुआ है उन सबकी में इस पोस्ट के जरिए माफी मांग रहा हूं।
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