Tuesday, May 5, 2020

मजदूरों के रेल किराए का वो सच जो आपको किसी ने नहीं बताया होगा।

मजदूरों के रेल किराए का वो सच जो आपको किसी ने नहीं बताया होगा।
मजदूरों के रेल के किराए को लेकर कई सारे तर्क वितर्क हो रहे हैं। अगर आप जानना चाहते हैं कि क्या है सच और क्या है झूठ। 

शुरुआत करते हैं अंशु की लिखी हुई प्यारी सी कविता से 

सुनो..
तुम, अब गांव में ही बस जाना..
दो सूखी रोटी खाना..
पर वापस ना आना !!
हम, तुम्हें दीन-हीन,
ग़रीब, बेचारा कहते हैं ना..
खुद घरों में घुसकर,
तुम्हे सड़कों पर भूखा, पैदल छोड़ते हैं ना..
बस तुम वापस न आना !!
यकीन मानना..
यह सारे शब्द बदलेंगे..
बेचारा कौन है, हम यकीनन समझेंगे !

पहले हमारा देश जाती, धर्म और चेहरे के रंग से बटा हुआ था । लेकिन अब राजनीति सोच की वजह से भी बटा हुआ है। तो एक पार्टी के समर्थक यह कह रहे हैं कि किराया मजदूरों के पास से नहीं लिया गया है। 85% सरकार दे रही है और 15% राज्य सरकार दे रही है। तो दूसरी पार्टी के समर्थक कह रहे हैं सरकार झूठ बोल रही है यहां तक कि उन्होंने ऐलान भी कर दिया कि अगर सरकार पैसे नहीं देंगी तो हम पैसे देंगे हालांकि उन्होंने सिर्फ एलान ही किया है उनके पास भी कोई पुख्ता प्लान है या नहीं यह उन्होंने अभी तक नहीं बताया है। तो क्या सरकार सच में झूठ बोल रही है तो हम आपको बता दे जी नहीं।  सरकार सच बता रही है । तो क्या मजदूरों से कोई भी पैसा नहीं लिया जा रहा है? जी नहीं मजदूरों के पास से स्लीपर क्लास का जो किराया होता है वो लिया जा रहा है।।।। तो फिर आखिर सच क्या है यह हम आपको बताते हैं। मान लीजिए महाराष्ट्र से यूपी जाने का किराया ₹200 है तो उसका 85% यानी कि ₹170 सरकार देगी और बाकी के ₹30 राज्य सरकार को देना होगा यह हम समझ रहे हैं या फिर हमें समझाया जा रहा है लेकिन यह गलत है। 21 जून 2019 की मिंट की रिपोर्ट पढ़ते हैं तो उनमें साफ जिक्र किया हुआ है कि रेलवे का खर्चा ज्यादा हो रहा है और आमदनी कम। यानी कि लॉक डाउन से पहले भी अगर आपने ट्रेन में सफर किया होता तो आपकी जो टिकट होती है जो किराया होता है उस पर 47 प्रतिशत सब्सिडी दी जाती है। अब रेलवे का मानना है कि यह ट्रेन जब वापिस आएगी तो खाली आएगी तो यह 47 प्रतिशत का हो जाता है 85 प्रतिशत। यानी कि 200  की टिकट का मजदूरों को ₹200 ही देना होगा।  आंकड़ों के माया जाल में फंसा कर सरकार लोगों को गुमराह कर रही है। सफेद झूठ बोल रही है। भिवंडी से उत्तरप्रदेश के गोरखपुर के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाई गई थी. लेकिन इसमें करीब 90 सीटें खाली रह गईं। घर लौटने की आस में स्टेशन पहुंचे 100 से ज्यादा मजदूरों को वापस लौटना पड़ा क्यों की इन मजदूरों के पास टिकट खरीदने के पैसे नहीं थे। यानी कि ट्रेन खाली जाएगी तो चलेगा लेकिन मजदूरों को बिना पैसे नहीं जाने दिया जाएगा ये सरकार ने साफ कर दिया है। अब जरा यह तस्वीर भी देख लीजिए yeah Vishwanath Shinde hai जो अपनी पत्नी दो बच्चे शारीरिक रूप से दिव्यांग चाची एवम् अपनी अंधी बहन के साथ मुंबई से लेकर अकोला तक 460 किलोमीटर का सफर पैदल तय करने को मजबूर है । और कुछ ही दिन पहले हमारे पत्रकार महोदय क्या कहते थे यह भी सुन लीजिए । यह दूसरी रिपोर्ट भी देख लीजिए जहां पर महाराष्ट्र से साइकिल लेकर यूपी जा रहे मजदूरों ने मध्यप्रदेश में अपनी जान गवाई क्या इनकी मौत की कोई कीमत नहीं है क्योंकि यह मजदूर है ? आखिर कौन है इसकी मौत का जिम्मेदार ? यह पूछता है भारत लेकिन क्या सच में ही पूछता है भारत ? बड़े ही अफसोस की बात है कि झूठी वाहवाही के लिए हमारे पास दूसरे देशों को मदद करने के लिए पैसे हैं , India shining home yahan thodi Moti ho ja namaste Trump ho पैसों का जुगाड़ कहीं से भी हो जाता है लेकिन जब हमारे ही देश के श्रमिकों की बात आती है हमारे ही देश के किसानों की बात आती है हमारे ही देश के मजदूरों की बात आती है तब हमारे पास पैसे नहीं होते। आज हम जिस घर में महफूज है वह घर उन्होंने ही बनाए हैं बेशक आज आप लोगों ने बहुत पैसे कमाए होंगे लेकिन उसके लिए मेहनत इन श्रमिकों ने की हुई है यह बात आज हम भूल गए है। साहिर लुधियानवी जी ने कहा था माना कि अभी तेरे मेरे, अरमानो की कीमत कुछ भी नहीं। मिट्टी का भी है कुछ मोल मगर, इन्सानों की कीमत कुछ भी नहीं
इन्सानों की इज्जत जब झूठे, सिक्कों में न तोली जायेगी। वो सुबह कभी तो आयेगी ॥

और उसके तुरंत बाद उन्होंने कहा था

संसार के सारे मेहनतकश, खेतो से, मिलों से निकलेंगे
बेघर, बेदर, बेबस इन्सां, तारीक बिलों से निकलेंगे
दुनिया अम्न और खुशहाली के, फूलों से सजाई जायेगी। वो सुबह हमीं से आयेगी ॥