Wednesday, February 3, 2021

क्या करें क्या ना करें यह कैसी मुश्किल हाय!

जी हां भाई साहब यह सेनेटरी पेड़ है, गांव में इसे लोग मेला कपड़ा भी कहते हैं। महिलाएं स्वरोजगार कर अपने पैरों पर खड़ी हो पाए इसलिए हम स्वरोजगार प्रशिक्षण का आयोजन करते हैं उसी प्रशिक्षण में से एक है सेनेटरी पैड बनाने की तालीम। मेरा यह अनुभव रहा है कि अगर कोई भी चीज आप मैन्युफैक्चर करते हैं लेकिन आप को बेचने की कला एवं मार्केटिंग का ज्ञान ना हो तो आप एक मजदूर बनकर रह जाते हैं। पतंग बनाने के व्यवसाय से लेकर हस्तकला की विविध चीजों का व्यवसाय कर रही महिलाओं का शोषण होते हुए मैंने देखा है। इसीलिए मैं चाहता था कि सेनेटरी पैड बनाने के साथ-साथ उसे बेचने की कला भी महिलाओं में होनी चाहिए। पहले तो एक पुरुष प्रशिक्षक को देखकर ही महिलाएं असमंजस में पड़ गई, सीखने के लिए तैयार किए बिना अगर किसी को कुछ सिखाया जाता है तो उसका कोई मतलब नहीं रहता है और मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती यही थी कि उन्हें सीखने के लिए कैसे तैयार किया जाए। फिर उन्हें quality consciousness सिखाने के लिए एक गेम बोट मेकिंग सिखाई गई और उसके बाद मैंने उनके साथ सेनेटरी पैड बनाना शुरु कर दिया और मेरे बनाए सेनेटरी पैड में कहां पर कौन सी गलती रह गई है यह बताने के लिए कहा। धीरे-धीरे उनकी हिचकिचाहट कम होती गई और उसके बाद ही हमने बेचने की कला का प्रशिक्षण लिया जो काफी मजेदार रहा। सीखने के लिए तैयार किए बिना अगर सिखाया जाता है तो उसका कोई मतलब नहीं रह जाता है। बड़े ही अफसोस के साथ मुझे कहना पड़ रहा है लेकिन हमारी शिक्षा व्यवस्था में सिखाने के लिए तैयार करने की व्यवस्था पर या फिर उसकी कला पर आज भी कोई ध्यान नहीं दिया जाता है और इसीलिए सीखने वाले बच्चों के लिए हमारी शिक्षा व्यवस्था एक बोझ बन गई है।