Wednesday, July 8, 2020

सोशल डिस्टेंसिंग क्या होता है यह आप क्या जानो साहब जी

सोशल डिस्टेंसिंग का हिंदी किया जाए तो होता है सामाजिक दूरी। कोरोना संक्रमण के बाद हम इस शब्द को महसूस कर रहे थे लेकिन मैं कई सालों से इस शब्द को लेकर परेशान हूं। एक दिन मेरे पर्सनल नंबर पर कॉल आया सामने थी मदारी समुदाय की होनहार लड़की, वैसे दिन में कई कॉल आते हैं और वो कौनसे समुदाय से है यह मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता लेकिन आज भी मुझे याद है कि वह लड़की मदारी समुदाय की ही थी उसके पीछे की एक वजह है जो आपको बाद में पता चलेगी। उसे किसी ने बताया था कि बरोड़ा स्वरोजगार विकास संस्थान, यानी कि हमारी संस्था गांव में आकर मुफ्त में ट्रेनिंग देती है और रोजगार करने में मदद भी करती है। मैंने उसे सारी जानकारी दी जो आमतौर पर हम किसी को भी देते हैं लेकिन वह बार-बार एक ही चीज का जिक्र कर रही थी कि वे लोग मदारी समुदाय से हैं। मुझे लगा मेरी बातें उसे समझ में नहीं आ रही है तो मैंने उसे कहा वह अपने गांव का नाम बता दे मैं वहां पर आकर सारी जानकारी दे दूंगा लेकिन एक ही बात दोहराती रही कि वह मदारी समुदाय से है। दूसरे दिन में उस गांव में पहुंच गया गांव बड़ा था तहसील कह सकते हैं। मैंने फिर उस लड़की को कॉल किया तो पता चला कि वह नंबर किसी और का था जैसे तैसे मैंने एड्रेस पूछा इतना ही बताया गया कि भाथीजी मंदिर के पास में आ जाइए वहां से मैं आपको ले जाऊंगा। गांव वालों को पूछ कर मैं भाथिजी मंदिर के पास पहुंच गया। मंदिर बंद था आसपास के लोगों को पूछा पहले लड़की का नाम बताया उसके बाद जिस लड़के से बात हुई थी उसका नाम बताएं लेकिन गांव वालों ने कहा कि यहां कोई मदारी समुदाय नहीं है। वापिस कॉल लगाया तो बताया गया कि वह वाला मंदिर नहीं दूसरा वाला है। ज्यादातर गांव वाले को पता ही नहीं था कि दूसरा भी कोई भाठीजी का मंदिर गांव में है, यहां तक की पूरे मदारी समुदाय की बस्ती इसी गांव में थी लेकिन किसी को पता नहीं था। फोन कर करके नजदीक में आई हुई एक पंचर वाले की दुकान तक पहुंच गया उससे पूछा मदारी समुदाय के लोग कहां रहते है ? पहले तो उसने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा और फिर पूछा कि क्या काम है? फिर मैंने हमारी संस्था के बारे में बताया वो बेफिजूल के दूसरे सवाल करने लगा लेकिन पता नहीं बता रहा था। मैंने फिर कॉल किया और अब उनकी ओर से एक लड़का मुझे लेने के लिए आ गया था। मैंने उसे मेरी बाइक के पीछे बैठ जाने को कहा लेकिन वह नहीं माना । थोड़ी ही दूरी पर एक बड़ा सा मंदिर दिखाई दिया।  एक छोटी सी दुकान थी और उसके पास एक बुजुर्ग सोए हुए थे। (आज के लिए बस इतना काफी है बाकी की कहानी दूसरे भाग में)

1 comment: