Sunday, January 10, 2021

हमारा स्कूलिंग, फैक्टरी स्कूलिंग


आज भारत में भारतीय संस्कृति की बड़ी-बड़ी बातें की जाती है, रामराज्य की जोर शोर से बात होती है लेकीन रामराज्य की स्कूलिंग व्यवस्था पर कोई बात नहीं करता। वो एक जिज्ञासा के आधार पर खड़ी की हुई प्रोजेक्ट बेस्ड लर्निंग सिस्टम थी। 

रामजी जब जंगल से जा रहे थे तब उन्होंने अपने गुरु से प्रश्न पूछा कि यह तारा कौन सा है और इसका जवाब देते देते गुरुजी ने उन्हें सारे नक्षत्रों का ज्ञान दे दिया। फिर उन्होंने किसी वनस्पति के बारे में पूछा तो वनस्पति शास्त्र सिखा दिया। अपने आप में वह एक बहुत ही बेहतरीन व्यवस्था थी। 

आज की शिक्षा व्यवस्था की शुरुआत लॉर्ड मेकॉले ने की थी और उनका मकसद भारत में अंग्रेजों के काम आ सके ऐसे मजदूर पैदा करना था। अफसोस की बात यह है कि आज भी हम इस फैक्ट्री स्कूलिंग को गले से लगाए हैं। यहां पर जिज्ञासा से भरा हुआ बच्चा जाता है और उसकी सृजनात्मकता उसकी जिज्ञासा उसकी काबिलियत उसका बचपन उसका ज्ञान निचोड़ कर निकाल दिया जाता है और फैक्ट्री में से बाहर निकलता है एक पृथ्वी विनाशक जो पृथ्वी का संतुलन बिगड़ने में अपना सहयोग देता है। 

एक ऐसा एजुकेटेड इडियट बाहर निकलता है जो कभी सवाल नहीं करता, जिसमें कोई जिज्ञासा नहीं होती, इसका एक ही मकसद होता है और वह है किसी भी तरीके से किसी भी हाल में जितना हो सके उतना ज्यादा पैसा कमाना। यह पैसे कहां से आता है ? क्यों आता है ?  किस तरीके से यह अर्थव्यवस्था चलाई जा रही है ?  क्यों चलाई जा रही है ? कौन इसे चला रहा है? कब से चली आ रही है ? ऐसे कोई सवाल इसे नहीं होते। 

वह पैसा जो इंसानों के लिए बना हुआ था आज वह उसका गुलाम बना हुआ है आने वाली पीढ़ी हम पर हंसेगी कि मेरे दादाजी ऐसे पागल थे जो कागज के टुकड़ों के लिए पृथ्वी का विनाश करने के लिए निकले थे। 

जिस भी चित्रकार ने यह चित्र बनाया है उससे मेरा सौ सौ सलाम है। मैंने जानने का प्रयास किया लेकिन मुझे कहीं पर भी नाम नहीं मिला आप में से किसी को पता हो तो कमेंट में सजा जरूर कीजिएगा।

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